5 Simple Techniques For baglamukhi sadhna

Wiki Article



हेमाभाङ्ग-रुचिं शशाङ्क-मुकुटां स्रक्-चम्पक-स्र्ग -युताम्!

पिङ्गोग्रैक-सुखासीनां, मौलावक्षोभ्य-भूषिताम् । प्रज्वलत्-पितृ-भू-मध्य-गतां दन्ष्ट्रा-करालिनीम्।

To save lots of The traditional cultural custom of Vedic faith, it is actually our ultimate duty to protect the virtues of sages. Responsibility is additionally needed for the lifestyle that solutions the inquiries with the mysteries of the whole world as a result of intelligence and logic.

विलयानल-सङ्काशां , वीरां वेद-समन्विताम् । विराण्मयीं महा-देवीं, स्तम्भनार्थे भजाम्यहम् ।।

४०. ॐ ह्लीं श्रीं भं श्रीजृम्भण्यै नमः – नाभौ (नाभि में) ।

मां बगलामुखी यंत्र चमत्कारी सफलता तथा सभी प्रकार की उन्नति के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कहते हैं इस यंत्र में इतनी क्षमता है कि यह भयंकर तूफान से भी टक्कर लेने में समर्थ है। माहात्म्य- सतयुग में एक समय भीषण तूफान उठा। इसके परिणामों से चिंतित हो भगवान विष्णु ने तप करने की ठानी। उन्होंने सौराष्‍ट्र प्रदेश में हरिद्रा नामक सरोवर के किनारे कठोर तप किया। इसी तप के फलस्वरूप सरोवर में से भगवती बगलामुखी का अवतरण हुआ। हरिद्रा यानी हल्दी होता है। अत: माँ बगलामुखी के वस्त्र एवं पूजन सामग्री सभी पीले रंग के होते हैं। बगलामुखी मंत्र के जप के लिए भी हल्दी की माला का प्रयोग होता है।

ऋष्यादि-न्यास- श्रीब्रह्मर्षये नमः शिरसि, गायत्री-छन्दसे नमः मुखे, श्रीचिन्मयी शक्ति-रूपिणी-ब्रह्मास्त्र-बगला-देवतायै नमः हृदि, ॐ-बीजाय नमः गुुह्ये ह्लीं -शक्तये नमः पादयोः, विह्महे -कीलकाय नमः सर्वाड्गे, श्रीब्रह्मास्त्र-बगलाम्बा-प्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः अञ्जलौ।

पहले ‘ ध्यान’ करे। फिर शरीर के अङ्गों में मन्त्रों का ‘न्यास’ अर्थात् स्थापन करे। यथा– चतुर्भुजां त्रि-नयनां, कमलासन-संस्थिताम् । त्रिशुलं पान-पात्रं च, गदां जिह्वां च बिभ्रतीम् ।।

तन्नः बगला प्रचोदयात् करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः अङ्ग-न्यास

वन्दे स्वर्णाभ-वर्णां मणि-गण-विलसद्धेम- सिंहासनस्थाम् ।

योगिनी-कोटि-सहितां, पीताहारोप-चञ्चलाम् ।

भगवती बगला के ‘ध्यान’ को समझकर उसका समुचित रूप से ज्ञान प्राप्त करना परम आवश्यक है। ‘ध्यान´ के अनुसार चिन्तन होने पर ही सिद्धि प्राप्त होती है इसीलिए कहा गया है- `ध्यानं विना भवेन्मूकः, सिद्ध-मन्त्रोऽपि साधकः ।’ अर्थात् ध्यान के बिना सिद्ध-साधक भी गूँगा ही रहता है।

click here श्रीबगला विद्या का बीज पार्थिव है-‘बीजं स्मेरत् पार्थिवम्’ तथा बीज-कोश में इसे ही ‘प्रतिष्ठा कला’ भी कहते हैं।

हेम-कुण्डल-भूषां च, पीत-चन्द्रार्ध-शेखराम् । पीत-भूषण-भूषाढ्यां, स्वर्ण-सिंहासने स्थिताम् ।।

Report this wiki page